जीवन परिचय
जयशंकर प्रसाद छायावाद कवियों के प्रवतक माने जाते थे। वह इस युग के सर्वश्रेष्ठ कवि एवं बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यक थे। कामायनी आपकी महान रचना मानी जाती है। नाटक कहानी कविता उपन्यास एवं निबंध आदि सभी विधताओं में प्रसाद में योगदान प्रदान किया है। ऐसे बहुमुखी प्रतिमा सम्पंन कवि का जन्म 1889 को वाराणसी में हुआ था। आपके पिता का नाम बाबू देवीकी प्रसाद था। यह जाति से वैश्य थे। प्रसाद को साहित्य रूचि विरासत में मिली थी। आपके पिता के पास साहित्यों की सभा जमी रही थी। आपकी माता श्रीमती मुन्नी देवी ने लम्बी आयु की इच्छा से आपका नाम जयशंकर प्रसाद रखा था। आपकी आरम्भिक शिक्षा घर में ही हुए। 10 वर्ष के बाद अपने कॉलेज चले गए। पिता जी की मृत्यु के बाद आप अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके। आप 7 वी कक्षा तक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की स्वाध्याय से प्रसाद ने हिंदी ,उर्दू ,संस्कृत,और इंग्लिश ,भाषाओं का अध्ययन किया। एक से एक परिवार जनों की मृत्यु के कारण आपके टूटते चले गए। प्रसाद ने ३ विवाह किये थे। आपके पुत्र का नाम रतन शंकर प्रसाद था। प्रसाद आप अंतिम समय तक साहित्य से जुड़े रहे। 1937 में इनका देहांत हो गया।
रचनाएँ
प्रसाद की प्रतिभाओं का विकास अनेक दिशाओं में हुआ हैं। उन्होंने अनेक कविताएं ,प्रबंध,काव्य ,खण्ड ,महाकाव्य ,एकाकी काव्य ,कानन कुसम ,झरना लहर यह कविताओं के संग्रह है। प्रबंध काव्यों में प्रेम राज्य,वन मिलन प्रेम, पथिक आसु तथा कामयानी प्रमुख हैं।
नाटक
अजातशत्रु ,चन्द्रगुप्त ,राजश्री ,
कहानी
आकाशदीप ,छाया ,प्रतिध्वनि
उपन्यास
तितली ,कंकाल ,
काव्यगत विशेषताएँ
प्रसाद को मुलता सौंदर्य एवं प्रेम का कवि माना जाता था। अपने साहित्य के उन्होंने प्रेम का कवि माना जाने लगा।अपने साहित्य में उन्होंने प्रचीन के प्रति निष्ठा और प्रेम की अभिवयक्ति की है। वह शिव के उपासक थे।
प्राकृतिक वर्णन
प्रसाद छायावादी कवि थे। आपके काव्य में अनेक प्राकृतिक का वर्णन हुआ है और प्रसाद ने अनेक काव्य में प्राकृतिक का वर्णन काफी लम्बे में किया था।
प्रेम और सौंदर्य का चित्रण
सर्व प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण करने में भी प्रसाद जी भी सबसे प्रमुख थे। उन्होंने प्रेम और लवण का कवि भी माना जाता था। कामयानी तक पहुँचते -पहुँचते प्रेम की पावनता उनके लौकिक से परलौकिक बना देती है। उनका प्रेम और सौन्दर्य कामायनी में आकर प्रेम भावना को बड़ा महत्व देती है और दुःख में भी सुख का अनुभव करती है। प्रेम पृथिक काव्य में आपने प्रेम की महत्ता का गान किया है।
राष्टीय चेतना
प्रसाद ने शुरू-शुरू व्रज भाषा में लिखा। बाद में खड़ी बोली में लिखने लगे। अपने सरल और मुहावरे दार भाषा का प्रयोग किया है। आपकी रचनाओं में आलकृत शैली के साथ-साथ अलकारों का भी प्रयोग किया गया है। शब्द विनारा अलंकार योजना श्रेष्ठ से प्रसाद का काव्य सर्व श्रेष्ठ काव्य है।
धन्यबाद आशा करता हुँ आपको यह जीवनी अच्छी लगी होगी।